Arun Yogiraj: कौन है अरुण योगिराज जिन्होंने बनाई रामलला की मूर्ति
Arun Yogiraj: आज सोमवार को श्री राम जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मूर्ति को शुक्रवार को गर्भग्रह में स्थापित किया गया था। रामलला की मूर्ति इतनी भव्य है कि इसे देखते ही हर कोई मोहित हो जाएगा। आइए जानते है इसे बनाने वाले अरुण योगिराज के बारें में
Arun Yogiraj: आज 22 जनवरी सोमवार को अयोध्या जी में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई। शुक्रवार को इस मूर्ति मंदिर के गर्भग्रह में स्थापित किया गया था। शुक्रवार को जब पहली बार मूर्ति की तस्वीरें सामने आई हर कोई देख कर मोहित हो गया था। इस मूर्ति को कर्नाटक के निवासी मूर्तिकार अरुण योगिराज ने बनाया है।
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Arun Yogiraj कौन है?
पेशे से मूर्तिकार अरुण योगिराज कर्नाटक राज्य के मैसूर के रहने वाले है। इनकी कई पीढ़िया मूर्ति शिल्प कला से जुड़ी है। अरुण के पिताजी योगिराज भी एक बेहतरीन मूर्तिकार है। वाड़ियार राज परिवार के महलों में शिल्पकला का काम अरुण के दादा जी बसवन्ना शिल्पी ने किया था। इनके परिवार के पीढ़ियों से मैसूर राज घराने में अच्छे संबंध है।
एमबीए करके जॉब करना चाहते थे Arun Yogiraj
शुरुआत में अरुण योगिराज अपने पुश्तैनी काम से कुछ अलग करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई की और एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करने लगे।
पर इनके दादा जी का मानना था कि अरुण एक मूर्तिकार ही बनेंगे, हुआ भी वही अरुण अपने पिता और दादा की तरह एक मूर्तिकार बन गए। वे अपने पूर्वजों से भी बढ़कर एक ऐसे मूर्तिकार बने जिन्हें स्वयं प्रभु श्रीराम जी की मूर्ति बनाने के सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इंडिया गेट के पास स्थित बोस की मूर्ति भी इन्होंने बनाई
अरुण योगिराज इससे पहले भी कई भव्य मूर्तियाँ बना चुके है, जिनकी बहुत तारीफ की गई। इन्होंने इंडिया गेट के पास स्थित सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को बनाया था। जिसके लिए इनकी बहुत सराहना की गई। सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति 30 फुट ऊंची है।
केदारनाथ में स्थापित भगवान आदि शंकराचार्य की मूर्ति भी अरुण योगिराज ने ही बनाई थी। जिसकी ऊंचाई 12 फुट है। इसके अलावा इन्होंने मैसूर में स्थित 21 फुट की हनुमान जी की मूर्ति भी बनाई है।
3 अरब साल पुरानी चट्टान के पत्थर से बनी है रामलला की मूर्ति
राम भगवान की मूर्ति बनाने के लिए अरुण योगिराज ने 3 अरब साल पुरानी चट्टानों के पत्थर का चुनाव किया था। मैसूर के आसपास मौजूद आर्कियन धारवाड़ क्रेटन चट्टानों से इस मूर्ति के लिए पत्थर को लिया गया।
जिस पत्थर का उपयोग रामलला की मूर्ति बनाने में किया गया है, वो दक्षिण भारत की सबसे पुरानी चट्टान है। यह चट्टानें मैसूर के दक्षिण-पश्चिम में सरगुर शहर में पास उजागर है। मैसूर यूनिवर्सिटी के एक सर्वे के अनुसार यह चट्टानें दक्षिण भारत की सबसे पुरानी चट्टानें है।