Vasant Panchami: कई वर्षों बाद शुभ योग बना वसंत पंचमी पर, ऐसे करें माँ सरस्वती की पूजा
Vasant Panchami & sarsawti puja: हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के त्योहार का विशेष महत्व होता है। बसंत पंचमी का त्योहार इस बार बुधवार, 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह शुभ दिन वीणावादिनी, विद्यादायिनी, हंसवाहिनी देवी सरस्वती को समर्पित है।
Vasant Panchami & Saraswati Puja: हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के त्योहार का विशेष महत्व होता है। बसंत पंचमी का त्योहार इस बार बुधवार, 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह शुभ दिन वीणावादिनी, विद्यादायिनी, हंसवाहिनी देवी सरस्वती को समर्पित है। इस अवसर पर आप इन शुभकामना संदेशों के साथ अपनों और दोस्तों तक मां सरस्वती का आशीर्वाद पहुंचा सकते हैं! वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी को पीला फूल और पीले रंग की मिठाई का भोग लगाया जाता है।
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माँ सरस्वती के पूजन(Vasant Panchami & Saraswati Puja) दिवस पर शायरी
सरस्वती पूजा का यह प्यारा त्यौहार, जीवन में खुशी लाएगा अपार,
सरस्वती विराजे आपके द्वार, शुभकामनाएं हमारी करें स्वीकार।
मां सरस्वती की कृपा अर्जित करें,
दुष्कर्मो को जीवन में वर्जित करें,
बना रहे सदा आपस में प्यार और दुलार,
आओ मिलकर मनाएं बसंत पंचमी का त्योहार।
रंग बरसे पीला और छाए
सरसों सी उमंग,
आपके जीवन में सदा रहे
बसंत के ये अनमोल रंग छा जाएं,
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
इस Vasant Panchami & Saraswati Puja के दिन मां सरस्वती की आरती भी करें
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण, वैभवशालिनि, त्रिभुवन विख्याता।।
जय सरस्वती माता…
चन्द्रवदनि, पद्मासिनि द्युति मंगलकारी।
सोहे हंस-सवारी, अतुल तेजधारी।।
जय सरस्वती माता…
बायें कर में वीणा, दूजे कर माला।
शीश मुकुट-मणि सोहे, गले मोतियन माला।।
जय सरस्वती माता…
देव शरण में आये, उनका उद्धार किया।
पैठि मंथरा दासी, असुर-संहार किया।।
जय सरस्वती माता…
वेद-ज्ञान-प्रदायिनी, बुद्धि-प्रकाश करो।।
मोहज्ञान तिमिर का सत्वर नाश करो।।
जय सरस्वती माता…
धूप-दीप-फल-मेवा-पूजा स्वीकार करो।
ज्ञान-चक्षु दे माता, सब गुण-ज्ञान भरो।।
जय सरस्वती माता…
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी, सुखकारी ज्ञान-भक्ति पावे।।
जय सरस्वती माता…
मां सरस्वती चालीसा
दोहा
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
सरस्वती चालीसा चौपाई
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
हे जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अंदर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहुता। तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
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समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा। सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
मोहे जान अज्ञनी भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी ॥
दोहा
माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप। डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु। मुझ अज्ञानी अधम को, आश्रय तू ही दे दातु ॥॥